भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने आज एक प्रस्ताव पेश किया है जिसमें कंपनियों को विदेश से कर्ज लेने की शर्तों में ढील दी जाएगी। इस प्रस्ताव के अनुसार कंपनियों को अब $1 बिलियन या नेट वर्थ का 300%, जो भी अधिक हो, तक उधार लेने की अनुमति दी जाएगी।
इसके अलावा, अधिकांश External Commercial Borrowings (ECBs) पर लगने वाली लागत की सीमाएं हटाई जाएँगी और बाज़ार-आधारित ब्याज दरों की अनुमति दी जाएगी।
प्रस्तावित बदलाव और उनकी विशेषताएँ
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पूर्व की प्रणाली में बड़ी विदेशी उधार (beyond $1.5 बिलियन) को स्वचालित मार्ग (automatic route) से नहीं लिया जा सकता था, अब यह सीमा अधिक लचीली की जा रही है।
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3 वर्ष से कम अवधि वाली छोटी विदेशी उधार पर अभी भी कुछ लागत संबंधी बंदिशें लागू रहेंगी।
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कंपनियों के ज़रिए किए जाने वाले विदेशी उधारी फैसलों के लिए पूरी तरह की पारदर्शिता और खुलासा आवश्यक होगा।
क्यों है यह प्रस्ताव अहम?
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इससे बड़ी कंपनियों को वैश्विक पूंजी बाजारों तक आसान पहुंच मिलेगी और निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
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विदेशी उधारी की लागत और शर्तों को सुविधाजनक बनाने से क्रेडिट प्रवाह (credit flow) बढ़ सकता है।
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कंपनियों को स्थितियों के मुताबिक लचीलापन मिलेगा, और वे बेहतर वित्तीय निर्णय ले सकेंगी।
जोखिम और सावधानियाँ
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विदेशी उधारी बढ़ने से यदि विनिमय दर (foreign exchange) में अस्थिरता हो, तो कंपनियों पर दबाव आ सकता है।
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अधिक कर्ज लेने वाली कंपनियों की जोखिम स्थिति बढ़ सकती है।
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पारदर्शिता और खुलासे को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है ताकि दायित्व और वित्तीय व्यवस्था सुरक्षित बनी रहे।