RBI ने मौद्रिक नीति में बदलाव नहीं किया, WACR को ऑपरेटिंग टारगेट बनाए रखा

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने मंगलवार को अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए घोषणा की कि Overnight Weighted Average Call Rate (WACR) को ही आगे भी नीति का मुख्य ऑपरेटिंग टारगेट बनाए रखा जाएगा।
इसका अर्थ यह है कि RBI का मुख्य ध्यान अब इंटर-बैंक उधारी दरों को नियंत्रित करने पर होगा, ताकि मौद्रिक नीति का असर सीधे बैंकिंग सिस्टम और अर्थव्यवस्था तक पहुँच सके।
 

RBI का निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है?

WACR वह दर है जिस पर बैंक एक-दूसरे को अल्पकालिक (ओवरनाइट) ऋण देते हैं। यदि यह दर RBI की नीति दरों के करीब रहती है तो इसका सीधा असर आम जनता और उद्योगों को मिलने वाले ऋण की लागत पर पड़ता है।
RBI का मानना है कि इस व्यवस्था से मौद्रिक नीति का प्रभाव और भी पारदर्शी तथा सुसंगत होगा।
 

मौजूदा नीतिगत दरें अपरिवर्तित

RBI ने यह भी स्पष्ट किया है कि रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और अन्य मौद्रिक दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
रेपो रेट अभी भी 6.50% पर कायम है।
इसका मतलब है कि फिलहाल उपभोक्ताओं और उद्योगों को ब्याज दरों में कोई तात्कालिक राहत नहीं मिलेगी।
 

लिक्विडिटी मैनेजमेंट पर फोकस

नई व्यवस्था में 7-दिन की लिक्विडिटी ऑपरेशन्स (Variable Rate Repo/Reverse Repo) को प्राथमिक उपकरण बनाया गया है।
इसके अलावा बैंकों को निर्देश दिया गया है कि वे प्रतिदिन अपने कैश रिज़र्व रेशियो (CRR) का कम से कम 90% बनाए रखें।
इससे यह सुनिश्चित होगा कि बैंकिंग सिस्टम में पर्याप्त नकदी उपलब्ध रहे और अचानक उतार-चढ़ाव से बाज़ार दरें प्रभावित न हों।
 

विशेषज्ञों की राय

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि RBI का यह कदम वित्तीय प्रणाली की स्थिरता और पारदर्शिता को बढ़ाएगा।
इससे यह भी संकेत मिलता है कि RBI फिलहाल ब्याज दरों में बदलाव करने के मूड में नहीं है और उसका मुख्य लक्ष्य मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखना और विकास को संतुलित बनाए रखना है।
 

आगे क्या?

विश्लेषकों का अनुमान है कि आगामी तिमाही में भी ब्याज दरों में किसी बड़े बदलाव की संभावना नहीं है।
हालांकि, यदि मुद्रास्फीति के आंकड़े बढ़ते हैं या वैश्विक अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव आता है तो RBI सख्त रुख भी अपना सकता है।