भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बुधवार को देश की बैंकिंग प्रणाली और क्रेडिट ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए 22 नए नीतिगत सुधार लागू किए हैं। इन कदमों का मुख्य उद्देश्य बैंकों की लोन क्षमता बढ़ाना, कॉरपोरेट सेक्टर को सस्ता और आसान कर्ज उपलब्ध कराना तथा समग्र अर्थव्यवस्था की रफ्तार को तेज़ करना है।
सुधार क्यों ज़रूरी?
भारत की अर्थव्यवस्था इस साल 6.8% वृद्धि दर से आगे बढ़ रही है। हालांकि यह दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, लेकिन यह सरकार और RBI के 8% लक्ष्य से नीचे है।
इसी अंतर को पाटने और प्राइवेट सेक्टर निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए RBI ने उधारी नियमों को उदार बनाया है।
22 सुधारों में मुख्य बिंदु
कॉरपोरेट लोन पर पाबंदी में ढील – अब बैंकों को बड़ी कंपनियों को अग्रिम कर्ज देने की सीमा से राहत मिलेगी।
इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग पर जोखिम घटाया गया – इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स के लिए बैंकों का जोखिम भार (Risk Weight) कम किया गया ताकि उन्हें कम पूंजी लगानी पड़े।
IPO फाइनेंसिंग सीमा बढ़ाई गई – स्टॉक मार्केट और निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए IPO फाइनेंसिंग लिमिट बढ़ा दी गई है।
कृषि और MSME सेक्टर पर ध्यान – छोटे किसानों और मझोले उद्योगों को उधारी बढ़ाने के लिए बैंकों को प्रोत्साहित किया गया है।
कैपिटल एडिक्वेसी नॉर्म्स में सुधार – बैंकों की पूंजी पर्याप्तता के मानकों को लचीला बनाया गया है ताकि वे अधिक कर्ज दे सकें।
संभावित असर
आर्थिक गतिविधि में तेजी: कॉरपोरेट सेक्टर को कर्ज मिलने से इंफ्रास्ट्रक्चर, रियल एस्टेट और इंडस्ट्री सेक्टर को गति मिलेगी।
रोज़गार में वृद्धि: नई फाइनेंसिंग से उद्योगों का विस्तार होगा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
कृषि व MSME को लाभ: छोटे उद्योग और किसान, जिनकी फाइनेंस तक पहुँच सीमित है, अब ज्यादा आसानी से लोन ले पाएंगे।
बैंकिंग सेक्टर की ग्रोथ: बैंकों की बैलेंस शीट मजबूत होगी और उनकी कमाई बढ़ेगी।
चुनौतियाँ भी बरकरार
हालांकि इन सुधारों को ऐतिहासिक बताया जा रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि:
अगर कर्ज का सही इस्तेमाल नहीं हुआ, तो NPA (Non Performing Assets) का खतरा फिर से बढ़ सकता है।
बैंकों को सुनिश्चित करना होगा कि लोन योग्य और प्रोडक्टिव सेक्टर में जाए।
आर्थिक ग्रोथ को स्थिर रखने के लिए सरकार और RBI को आगे भी सतर्क रहना होगा।
RBI का संदेश
RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा:
"इन सुधारों का उद्देश्य बैंकों को अधिक स्वतंत्रता देना है ताकि वे भारत की विकास यात्रा को गति दें। हमारी प्राथमिकता है कि वित्तीय प्रणाली सुरक्षित भी रहे और लचीली भी।"